कुछ बीते हुए लम्हे
कुछ बीती हुई सुनहरी यादें
कुछ खट्टे मीठे पल
कुछ हुए अपने
कुछ हुए बेगाने
कुछ बने सहारा
कुछ टूट गए रिश्ते
कुछ बन गए फरीशते
कुछ ने किया बेसहारा
कुछ पहुंच गए बुलंदियों पर
तो कुछ खो गए गर्त में
हमने जैसे खाएं अन्न, वैसे हुए मन
हमें जैसे मिले संस्कार वैसे बने विचार
जैसी मिली शिक्षा
वैसे दी हमने छोटों को दीक्षा
हम संजोए रहे टूटे फूटे रिश्तों को
संजोए रहे खट्टी मीठी यादों को
करते रहें प्रभु का गुणगान
निश्चित ही निकट होगा परम धाम।
बृजेश मालवीय युगेस्वर
